गंगा को दूषित कर रहा है हावड़ा रेलवे स्टेशन के पास होटलों से निकला कचरा, एनजीटी ने मांगा जवाब

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि हलफनामे में इस बात का उल्लेख होना चाहिए कि कितने होटल या भोजनालयों के पास एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी)/सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) की सुविधा है

By Susan Chacko, Lalit Maurya

On: Monday 11 September 2023
 

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को हावड़ा रेलवे स्टेशन के पास चल रहे सभी होटलों और भोजनालयों के बारे में जानकारी देते हुए जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि हलफनामे में इस बात का उल्लेख होना चाहिए कि कितने होटल या भोजनालयों के पास एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी)/सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) की सुविधा है। वहीं कितने पर्यावरण नियमों का पालन कर रहे हैं, जैसे कि उनके पास संचालन के लिए उचित परमिट हैं।

एनजीटी की पूर्वी पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार के साथ-साथ हावड़ा नगर निगम, पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन को भी नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है। मामले पर अगली सुनवाई 10 अक्टूबर, 2023 को होगी।

गौरतलब है कि आवेदक सुभाष दत्ता ने हावड़ा रेलवे स्टेशन पर होटलों/भोजनालयों से निकले दूषित सीवेज से गंगा में बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए अधिकारियों को तत्काल कदम उठाने का निर्देश देने की प्रार्थना कोर्ट से की है। साथ ही उन्होंने हावड़ा रेलवे स्टेशन के आसपास गंगा के किनारों से अतिक्रमण को हटाने की दरख्वास्त भी कोर्ट से की है। इसके अतिरिक्त, वे यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि इन होटलों और भोजनालयों से कचरा ले जाने वाले सभी पाइप और नालियां हावड़ा रेलवे स्टेशन के पास निकटतम सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) से जुड़ी हों।

दावा है कि राज्य सरकार द्वारा संचालित हुगली नदी जलपथ परिबाहन समबाय समिति (एचएनजेपीएसएस) ने नदी के पास शौचालय बनाए हैं और इन शौचालयों से निकलने वाला कचरा नदी में बह रहा है। इसके अलावा, इस संगठन के सामने नदी के किनारे पर बहुत सारा कचरा रखा गया है, जिसमें विभिन्न प्रकार की लकड़ी और अन्य अपशिष्ट शामिल हैं।

एनजीटी ने कोलकाता में नहरों से निकाली गाद की डंपिंग के मामले में सिंचाई विभाग से मांगा जवाब

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पश्चिम बंगाल में सिंचाई और जलमार्ग विभाग गाद की डंपिंग के मामले में जवाब मांगा है। आरोप है कि सिंचाई विभाग कोलकाता में सिंचाई नहर से निकाली गाद को खाली जमीन पर डंप कर रहा था। इस तरह वो एक अस्थाई डंपिंग साइट बना रहा था।

एनजीटी ने सिंचाई और जलमार्ग विभाग के प्रधान सचिव को मामले में एक कानूनी बयान (शपथ पत्र) प्रस्तुत करने के लिए कहा है। इसमें इस बात की पुष्टि करनी है कि उक्त क्षेत्र में डंप की गई सभी गाद और कचरे को हटा दिया गया है, और भूमि को दोबारा उसके मूल स्वरुप में बहाल कर दिया गया है। इस मामले में अगली सुनवाई 22 सितंबर, 2023 को होनी है।

आवेदक का आरोप है कि गैर कानूनी तरीके से की जा रही डंपिंग और उपकरण के उपयोग के चलते इस अस्थाई डंपिंग ग्राउंड में जगह-जहाज गड्ढे बन गए हैं, जिसमें पानी जमा हो गया है।

जिप्सम खनन से स्वास्थ्य और पर्यावरण पर नहीं पड़ रहा असर: बारामूला जिला खनिज अधिकारी

रिपोर्ट के मुताबिक जिप्सम खनन के पर्यावरणीय प्रभावों को ध्यान में रखते हुए पट्टा धारकों को कुछ शर्तों के साथ पर्यावरणीय मंजूरी दी गई है। जैसा कि खनन योजना और पर्यावरण परमिट में कहा गया है, अधिकारी यह सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक खनन कंपनी पर नजर रख रहे हैं कि वे इन नियमों का पालन करें। यह जानकारी बारामूला के जिला खनिज अधिकारी ने 11 सितंबर 2023 को एनजीटी में सबमिट रिपोर्ट में दी है।

हालांकि रिपोर्ट ने इस दावे से इंकार किया है कि वहां जिप्सम से पानी दूषित हो रहा है और टीबी का कारण बन रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक बारामूला के जिप्सम खनन क्षेत्र में खनन कंपनियां वायु प्रदूषण और धूल को नियंत्रित करने के लिए काम कर रही हैं। वे खदानों के आसपास धूल को कम रखने के लिए पानी के छिड़काव करती हैं।

साथ ही, यह भी बताया गया कि जिप्सम आसानी से पानी में नहीं घुलता, इसलिए बारिश के मौसम में खनिजों के बह जाने की संभावना बहुत कम होती है। साथ ही, जिप्सम खनन में पानी का उपयोग नहीं किया जाता है।

इजरा से चिरियान गांवों तक के क्षेत्र में करीब 10 करोड़ टन जिप्सम की खोज के बाद, जम्मू कश्मीर सरकार ने पंद्रह खनन कंपनियों को खनन की अनुमति दी है। इन कंपनियों ने सभी औपचारिकताएं पूरी की हैं और वन्यजीव और वन सहित इससे जुड़े विभिन्न विभागों से एनओसी प्राप्त की है और उनकी खनन योजनाओं को भारतीय खान ब्यूरो द्वारा भी अनुमोदित किया गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2016 से, जिप्सम खनन पट्टों की निगरानी और नियमन 'जम्मू और कश्मीर लघु खनिज रियायत, भंडारण, खनिजों के परिवहन और अवैध खनन की रोकथाम नियम, 2016' के तहत किया जाता है।

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