पानी में आर्सेनिक की समस्या का किफायती समाधान दे रहे कुएं

बिहार के समस्तीपुर जिले के चापर गांव के करीब 20 आर्सेनिक प्रभावित परिवार कुएं के पानी का इस्तेमाल कर रहे हैं

By Umesh Kumar Ray

On: Tuesday 18 February 2020
 
समस्तीपुर ज़िले के चापर गांव का कुआं, जिसे तीन महीने पहले पुनर्जीवित किया गया है। फ़ोटो: उमेश कुमार राय

बिहार के समस्तीपुर जिले के चापर गांव में रहने वाले 25 साल के बिजेंद्र राम सामान्य से ज्यादा दुबले हैं और उन्हें सांस की भी बीमारी है। उनके हाथ व पैर में चकत्ते हैं। उन्होंने जब डॉक्टर से दिखाया, तो डॉक्टर ने बताया कि उनके शरीर में आर्सेनिक प्रवेश कर चुका है और उन्हें साफ पानी पीना चाहिए। लेकिन, उनके चापाकल (हैंडपंप) से आर्सेनिकयुक्त पानी निकलता था, तो उन्होंने खरीद कर पानी पीना शुरू किया।

इस तरह पीने के पानी पर हर महीने 600 रुपए खर्च होने लगा, जो बिजेंद्र के लिए अतिरिक्त अतिरिक्त बोझ था, क्योंकि उसके पास कमाई के सीमित स्रोत थे।

लेकिन, पिछले ढाई-तीन महीने से उन्हें मुफ्त में साफ पानी मिल रहा है। दरअसल, एक उनके घर के पास के एक मृतप्राय कुएं को पुनर्जीवित कर दिया गया है। बिजेंद्र इसी कुएं का पानी पी रहे हैं। वह कहते हैं, “अब घर के पास ही साफ पानी मिल जा रहा है और इसके लिए कोई पैसा भी खर्च नहीं करना पड़ रहा है।”  बिजेंद्र की तरह ही गांव के करीब 20 आर्सेनिक प्रभावित परिवार इस कुएं के पानी का इस्तेमाल कर रहे हैं।

बिजेंद्र के 67 वर्षीय पिता उपेंद्र राम ने  कहा, “20 साल पहले तक वे लोग कुएं के पानी का इस्तेमाल कर रहे थे, तब पानी में आर्सेनिक जैसी कोई समस्या नहीं थी। जब से चापाकल के पानी का इस्तेमाल शुरू किया, ये समस्या आने लगी।”

चापर गांव के कुएं को पुनर्जीवित करने वाले संगठन आगा खां रूरल सपोर्ट प्रोग्राम (एकेआरएसपी) से जुड़े जयप्रकाश सिंह ने कहा, “हमलोगों ने स्थानीय लोगों को कुएं के पानी के फायदे के बारे में जागरूक किया और उनके सहयोग से इस कुएं को पुनर्जीवित किया।”

उत्तर बिहार के खगड़िया के जिले के बड़ी मदारपुर गांव के भूगर्भ जल में भी आर्सेनिक भारी मात्रा में मौजूद है। यहां के लोगों के शरीर में भी आर्सेनिक की मौजूदगी के निशान मिलते हैं। इस गांव में दो कुओं को पुनर्जीवित किया गया है और लगभग एक दशक से दर्जनों आर्सेनिकग्रस्त परिवार इन कुओं के पानी का इस्तेमाल कर रहा है।

बड़ी मदारपुर में पानी पर काम करने वाले मेघ पाइन अभियान से जुड़े पवन पोद्दार ने कहा, “हमलोगों ने एक कुएं को पुनर्जीवित करने में मामूली आर्थिक की थी। बाकी काम स्थानीय लोगों ने किया। एक कुएं से फायदा होने लगा, तो लोगों ने अपने बूते दूसरे कुएं को भी पुनर्जीवित किया।”

 ये दो मिसालें बताती हैं कि आर्सेनिकमुक्त पेयजल की आपूर्ति कराने में कुएं जैसे पारम्परिक जलस्रोत बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।

पिछले साल 25 जुलाई को लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने बताया कि बिहार के 22 जिलों के भूगर्भ जल में आर्सेनिक मौजूद है, जबकि 13 जिले फ्लोराइड से प्रभावित हैं। वहीं, सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड के आंकड़ों  मानें, तो बिहार की 6.33 करोड़ आबादी आर्सेनिकयुक्त पानी पी रही है।

बिहार सरकार ने पिछले साल जल-जीवन-हरियाली मिशन शुरू किया है। इस मिशन पर तीन साल में 24 हजार 524 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। इसमें पेड़ पौधे लगाने के सात ही पोखर, छोटी नदियों व पुराने कुओं को पुनर्जीवित किया जाएगा।

मेघ-पाइन अभियान से जुड़े एकलव्य प्रसाद कहते हैं, “कुएं के पानी में आर्सेनिक या आयरन जैसे तत्व नहीं होते हैं, इसलिए ये पेयजल का सबसे सुरक्षित स्रोत हैं।  लेकिन, कुओं को केवल पुनर्जीवित करना पर्याप्त नहीं है। इसके लिए लोगों को भी जागरूक करना होगा। उन्हें बताना होगा कि कुएं उनके लिए क्यों फायदेमंद है। कुओं को गंदे पानी के तकनीकी समाधान के रूप में देखा जाना चाहिए।”  

Subscribe to our daily hindi newsletter