ग्रामीण इलाकों का पानी चूस रहे हैं शहर

38.3 करोड़ लोगों की आबादी वाले 69 शहरों को प्रति वर्ष लगभग 16 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी ग्रामीण क्षेत्रों से प्राप्त होता है

By Lalit Maurya

On: Tuesday 16 April 2019
 
Credit : Sayantan Bera

'रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून' यह दोहा आज के परिपेक्ष्य में बहुत सटीक बैठता है, आज भारत ही नहीं,दुनिया के अनेक देश जल संकट की पीड़ा से त्रस्त हैं। दुनिया में आज जिस तेजी से शहरीकरण हो रहा है, उससे ग्रामीण क्षेत्रों पर शहरी क्षेत्रों के लिए जलापूर्ति का दबाव निरंतर बढ़ता जा रहा है ।

अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की एक टीम ने शहरों की बढ़ती आबादी और उसकी पानी की मांग को पूरा करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों से होने वाली जल आपूर्ति पर पहली वैश्विक और व्यवस्थित समीक्षा प्रस्तुत की है। जिसमें उन्होंने पाया कि 38.3 करोड़ लोगों की आबादी वाले 69 शहरों को प्रति वर्ष लगभग 16 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी ग्रामीण क्षेत्रों से प्राप्त होता है - जो कि कोलोराडो नदी के वार्षिक प्रवाह के बराबर है।

एनवायर्नमेंटल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित इस अध्ययन (https://iopscience.iop.org/article/10.1088/1748-9326/ab0db7/meta) के अनुसार एशिया और उत्तरी अमेरिका अपने शहरी क्षेत्रों के जलापूर्ति के लिए काफी हद तक ग्रामीण क्षेत्रों पर निर्भर है । और एशिया में पानी की यह मांग निरंतर बढ़ती जा रही है। जहां भारत में हैदराबाद से लेकर जॉर्डन में अम्मान जैसे 21 शहर अपनी पानी की आवश्यकता के लिए ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की और किये जा रहे जल स्थानांतरण वाली परियोजनाओं पर निर्भर हैं। 

गौरतलब है कि 1960 के बाद से अब तक वैश्विक स्तर पर शहरों की आबादी में लगभग चार गुना वृद्धि हुई है । जिससे न केवल पानी की मांग में वृद्धि हो रही है बल्कि पानी के लिए शहरों और गांवों के बीच का तनाव भी बढ़ता जा रहा है। ऐसी आशंका है की वर्ष 2050 तक शहरी आबादी में 250 करोड़ लोग और जुड़ जायेंगे, जिससे जल संकट के और गहराने के आसार हैं | यहां तक कि ब्रिटेन में जहां माना जाता है कि पानी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। वहां भी पानी की कमी को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए पर्यावरण एजेंसी के प्रमुख सर जेम्स बेवन ने चेतावनी दी गई है,यदि जल्द ही आवश्यक कदम न उठाये गए तो अगले 25 वर्षों में इंग्लैंड, पानी की भारी किल्लत का सामना कर सकता है।

शोधकर्ताओं ने पाया कि पानी की आपूर्ति एवं प्रबंधन में अक्सर शहरों का आर्थिक और राजनीतिक रूप से बोलबाला रहता है। जबकि ग्रामीण क्षेत्र जलापूर्ति के लिए चलाई जा रही इन परियोजनाओं के डिजाइन, विकास और कार्यान्वयन में शामिल नहीं होते हैं । जिसके परिणामस्वरूप शहर और गांव जल परियोजनाओं पर आपस में तालमेल नहीं बैठा पाते और तनाव की स्थिति पैदा हो जाती है। यही वजह है की आज मेलबर्न (ऑस्ट्रेलिया) से मॉन्टेरी (मेक्सिको) तक पानी के लिए होने वाले संघर्ष के अनेकोंअनेक मामले सामने आ रहें हैं।

क्या जलवायु परिवर्तन है जिम्मेदार

जलवायु परिवर्तन के चलते पिछले एक दशक में (https://www.downtoearth.org.in/news/water/world-of-cape-towns-59982) केप टाउन, बैंगलोर, साओ पाओलो और मेलबर्न जैसे अनेक शहर सूखे जैसी स्थिति का सामना कर रहे हैं । जहां शहरी इलाकों पर गहराते जल संकट और बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों के जल संसाधनों पर आपूर्ति के लिए दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। वाटरएड में कार्यरत जल और स्वच्छता की वरिष्ठ प्रबंधक मबये म्बगेरे के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग के कारण पड़ने वाले भयंकर सूखे और अन्य चरम मौसमी घटनाओं के कारण यह तनाव और गहराता जा रहा है। जर्नल नेचर में छपे अध्ययन (https://www.nature.com/articles/s41893-017-0006-8) के अनुसार 2050 तक शहरों में पानी की मांग 80 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी, जबकि जलवायु परिवर्तन के चलते पानी के वितरण और समय में भरी बदलाव आएगा। इस अध्ययन में सम्मिलित शहरों में से 27 प्रतिशत शहर ऐसे हैं जिनकी आबादी 23 करोड़ से ज्यादा है, जहां पानी की मांग वहां सतह पर उपलब्ध जल की मात्रा से कहीं ज्यादा है। इसके अतिरिक्त 19% शहर ऐसे हैं जो अपनी पानी की जरुरत के लिए सीधे तौर पर ग्रामीण इलाकों के जल पर निर्भर हैं, जिससे उनके बीच संघर्ष की सबसे अधिक संभावना है।

भारत भी अछूता नहीं इस समस्या से 

गैर-लाभकारी संगठन वाटरएड द्वारा जारी (http://www.indiaenvironmentportal.org.in/content/462177/beneath-the-surface-the-state-of-the-worlds-water-2019/ )  रिपोर्ट के अनुसार भारत अपने इतिहास के सबसे बुरे जल संकट के दौर से गुजर रहा है। जहां एक अरब लोग वर्ष के किसी न किसी हिस्से में जल संकट का सामना करते हैं, वहीं 60  करोड़ लोग ऐसे क्षेत्रों में रह रहे है, जहां जल संकट की समस्या विकट है।  नीति आयोग भी भारत में गंभीर जल संकट होने के बात को स्वीकार कर चुका है। हाल ही में उसके द्वारा जारी जल प्रबंधन इंडेक्स (http://www.indiaenvironmentportal.org.in/content/456310/composite-water-management-index) के आंकड़ों के अनुसार देश में तकरीबन 60 करोड़ लोग पानी की भयंकर कमी से जूझ रहे हैं। वहीं, लगभग 75 फीसदी घरों को पीने का पानी मुहैया नहीं है। जबकि 84 फीसदी ग्रामीण इलाकों में पीने का पानी पाइप से नहीं पहुंच रहा है |

उचित प्रबंधन से संभव है समस्या का समाधान

इस अध्ययन के प्रमुख लेखक डॉ डस्टिन गैरिक (जो की ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के स्मिथ स्कूल ऑफ एंटरप्राइज में पर्यावरण प्रबंधन के एसोसिएट प्रोफेसर भी हैं) के अनुसार, "हमारे शोध से यह संकेत मिलता है कि इस तरह की परियोजनाओं में प्रशासन बहुत अधिक मायने रखता है, इसके साथ ही शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों को यदि इन परियोजनाओं का समुचित लाभ उठाना है तो उन्हें आपस में मतभेदों को भुला कर बातचीत के जरिये हल निकालने की आवश्यकता है। जिससे वे मिलकर जलवायु परिवर्तन और उससे गहराने वाले जल संकट के खतरे का मिलकर सामना कर सकें" |

उदाहरण के लिए, 90 के दशक में मैक्सिको के मॉन्टेरी शहर ने रियो ग्रांडे की सहायक नदी के जल को प्रयोग करने के बदले किसानों को मुआवजे के साथ-साथ शहर का वेस्ट वाटर सिंचाई के लिए प्रदान किया था। जिससे न केवल मॉन्टेरी शहर की जल समस्या का समाधान हो सका बल्कि नदी जल के उचित प्रबंधन के कारण बाढ़ के जोखिम को भी सीमित करने में मदद मिली है। गैर-लाभकारी पर्यावरण अनुसंधान समूह, ‘कार्बन डिस्क्लोजर प्रोजेक्ट’ में जल सुरक्षा की निदेशक केट लैंब के अनुसार "यह अध्ययन दर्शाता है की पानी दुनिया के सबसे अहम संसाधनों में से एक है। जो की सीमित है और जिसका कोई दूसरा विकल्प नहीं हैं। और यही सही समय है जब हमें इसके बारे में गंभीरता से सोचना शुरू करना होगा" ।

 

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