दुनिया से विलुप्त हो सकती हैं 22 फीसदी प्रवासी प्रजातियां: संयुक्त राष्ट्र

संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा चिंता प्रवासी मछलियों को लेकर है, जिनकी 97 फीसदी प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है

By Lalit Maurya

On: Thursday 15 February 2024
 
जिन प्रवासी प्रजातियों के लिए खतरा पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गया है उनमें स्टेपी ईगल भी शामिल है; फोटो: आईस्टॉक

दुनिया भर में प्रवासी प्रजातियां गंभीर चुनौतियां का सामना कर रहीं हैं, ऐसे में उन पर जल्द ध्यान न दिया गया तो इनमें से 22 फीसदी प्रजातियां जल्द विलुप्त हो सकती हैं। इसका मतलब है कि दुनिया की हर पांचवी प्रवासी प्रजाति पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रवासी प्रजातियों पर जारी पहली रिपोर्ट में सामने आई है।

इतना ही नहीं, रिपोर्ट का अनुमान है कि 44 फीसदी प्रवासी प्रजातियों की आबादी में गिरावट आ रही है। हालांकि कुछ प्रजातियों में वृद्धि भी देखने को मिली है। रिपोर्ट की मानें तो सबसे ज्यादा खतरा प्रवासी मछलियों को लेकर है, जिनकी 97 फीसदी प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है।

गौरतलब है कि इन प्रवासी प्रजातियों का जीवन बेहद अनूठा होता है। यह अपने जीवन चक्र में भोजन और प्रजनन के लिए लम्बी दूरी की यात्राएं करती हैं। कई बार इनकी यह यात्रा हजारों किलोमीटर की भी होती है। ऐसे में जब यह एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में पहुंचती हैं तो लोगों के लिए कौतुहल का विषय बन जाती हैं। इन्हें देखने के लिए हर साल बड़ी संख्या में पर्यटक भी जुटते हैं।

यह प्रवासी प्रजातियां दुनिया के पारिस्थितिक तंत्र को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती हैं। ये पौधों को परागित करती हैं, पोषक तत्वों का परिवहन करती हैं, कीटों को नियंत्रित करती हैं और कार्बन भंडारण में भी सहायता करती हैं।

इनके विशिष्ट आवासों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए सीएमएस की कार्यकारी सचिव एमी फ्रेंकेल का कहना है कि यह प्रजातियां अपने जीवनचक्र में अलग-अलग तरह के विशिष्ट आवासों पर निर्भर रहती हैं। वे इन स्थानों तक पहुंचने के लिए नियमित रूप से, कभी-कभी तो हजारों मील की यात्रा करती हैं।

ऐसे में रास्ते में उन्हें भारी चुनौतियों और खतरों का सामना करना पड़ता है। ये चुनौतियां और खतरे उनके गन्तव्य स्थानों पर भी होते हैं, जहां वे प्रजनन या भोजन करती हैं।" उनके मुताबिक जब यह प्रजातियां देशों की सीमाओं को पार करती हैं तो उनका अस्तित्व उन सभी देशों के प्रयासों पर निर्भर करता है जहां वे पाई जाती हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 30 वर्षों में सीएमएस में सूचीबद्ध 70 प्रवासी प्रजातियों के लिए खतरा कहीं ज्यादा बढ़ गया है। इनमें स्टेपी ईगल, मिस्र का गिद्ध और जंगली ऊंट शामिल हैं। वहीं इस दौरान केवल 14 प्रजातियों की स्थिति में सुधार हुआ है। इनमें नीली और हंपबैक व्हेल, सफेद पूंछ वाली समुद्री उकाब और काले चेहरे वाली स्पूनबिल शामिल है।

इंसानों से है इन प्रवासी प्रजातियों को सबसे ज्यादा खतरा

रिपोर्ट का यह भी कहना है कि जिन प्रवासी प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा बढ़ रहा है, उनमें सीएमएस के तहत सूचीबद्ध न होने वाली 399 प्रजातियां भी शामिल हैं। इनमें मुख्य रूप से पक्षी और मछलियों की प्रजातियां शामिल हैं।

रिपोर्ट में इंसानी गतिविधियों को इन प्रवासी प्रजातियों के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया है। इंसानी गतिविधियों के चलते इनके आवासों को नुकसान हो रहा है साथ ही जिस तरह से इंसान इन प्रवासी प्रजातियों का दोहन कर रहा है वो इनके अस्तित्व के लिए खतरा बनता जा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार जिन प्रजातियों को सीएमएस में सूचीबद्ध किया गया है, उनमें से करीब तीन चौथाई प्रजातियां आवास को होते नुकसान, उनके विखंडन और क्षरण से पीड़ित हैं।

वहीं 70 फीसदी प्रजातियां बहुत ज्यादा किए जा रहे दोहन से प्रभावित हैं। इसमें इनका जानबूझकर और अनजाने में किया शिकार शामिल है। रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि सीएमएस में सूचीबद्ध प्रवासी प्रजातियों के लिए महत्वपूर्ण समझे जाने वाले प्रमुख जैव विविधता क्षेत्रों में से 51 फीसदी को संरक्षित क्षेत्रों दर्जा प्राप्त नहीं है, जो इनके संरक्षण के लिए बड़ी चुनौती है। इसी तरह इन प्रजातियों के लिए महत्वपूर्ण माने जाने वाले 58 फीसदी क्षेत्र इंसानी दबाव का सामना कर रहे हैं। जहां उनकी वजह से जैवविविधता पर असर पड़ रहा है।

रिपोर्ट का यह भी कहना है कि जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और आक्रामक प्रजातियों ने भी प्रवासी प्रजातियों पर गहरा प्रभाव डाला है। यह भी अनुमान है कि जिस तरह से तापमान में वृद्धि हो रही है उसके चलते आने वाले दशकों में जैवविविधता पर जलवायु में आते बदलावों का प्रभाव कहीं ज्यादा बढ़ जाएगा।

गौरतलब है कि जहां बढ़ता तापमान इन प्रवासी प्रजातियों को बहुत जल्द, बहुत देर में या बिल्कुल प्रवास न करने पर विवश कर सकता है। इसके साथ ही बढ़ता तापमान इनके लिंगानुपात को बिगाड़ सकता है। उदाहरण के लिए समुद्री कछुओं की विशेष प्रजनन परिस्थितियों में जहां भ्रूण का लिंग तापमान पर निर्भर करता है। इतना ही नहीं जलवायु में आता यह बदलाव उनके भोजन खोजने के समय को भी कम कर सकता है। उदाहरण के लिए, अफ्रीकी जंगली कुत्ते अत्यधिक गर्मी में कम भोजन एकत्र कर पाते हैं। इसी तरह ठंडे समय की तुलना में, गर्म तापमान के दौरान उनके कम बच्चे पैदा होते हैं।

हालांकि रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि यदि सभी स्तरों पर मजबूत और समन्वित कार्रवाई की जाए तो इन प्रजातियों को बचाया जा सकता है। ऐसे ही कुछ साइप्रस में देखने को मिला है जहां पक्षियों को पकड़ने के अवैध जाल को प्रतिबन्धित करने के लिए स्थानीय स्तर पर की गई ठोस कार्रवाई के कारण, पक्षियों की आबादी में फिर से बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है।

इसी तरह कजाखस्तान में मिलकर किए गए संरक्षण और बहाली कार्य की वजह से साइगा एंटेलोप जोकि लम्बे सींगों वाले हिरन की एक प्रजाति है, उसे विलुप्त होने के कगार से वापस लाया जा सका है।

बता दें कि यह रिपोर्ट समरकंद में चल रहे सीएमएस के पक्षकारों के 14वें सम्मेलन के दौरान जारी की गई है। 12 से 17 फरवरी 2024 के बीच करीब सप्ताह भर चलने वाले इस कार्यक्रम में सरकारों के साथ-साथ वन्यजीव संगठन और वैज्ञानिक भी एकजुट हुए हैं। बता दें कि सीएमएस, संयुक्त राष्ट्र के तहत वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण के ली की गई एक अंतराष्ट्रीय संधि है।

इस संधि को को 1979 में लागू किया गया था। आज दुनिया के 133 देश इसके सदस्य हैं। इस संधि के तहत करीब 1,189 प्रवासी  प्रजातियों की निगरानी की जाती है। साथ ही उनके द्वारा 3000 दूसरी प्रवासी प्रजातियों का भी इस रिपोर्ट में अध्ययन किया गया है।

इसका लक्ष्य दुनिया भर में प्रवासी जीवों और उनके आवासों की सुरक्षा पर ध्यान देना है। यह संधि न केवल इन प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए सरकारों और वन्यजीव विशेषज्ञों को एक साथ लाती है। साथ ही वैश्विक सहयोग के लिए एक महत्वपूर्ण मंच भी प्रदान करती है।

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