एशिया के 1 अरब से अधिक लोगों को करना पड़ेगा पानी की कमी का सामना

शोधकर्ताओं ने बताया कि इस सदी में ग्लेशियरों का अधिकांश भाग पिघल जाएगा और धीरे-धीरे पानी की आपूर्ति बंद हो जाएगी, जिसकी वजह से बहुत बड़ी आबादी प्रभावित होगी।

By Dayanidhi

On: Thursday 17 June 2021
 
Photo : Wikimedia Commons

एक नए शोध में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण पहाड़ों की बर्फ अधिक तेजी से पिघल रही है और ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं, यह एशिया में पानी की आपूर्ति पर गंभीर असर डाल रहा है।

इस तरह के प्रभावों से 1 अरब से अधिक लोगों की जल आपूर्ति बदल रही है, जो हिमालय और काराकोरम पर्वत श्रृंखलाओं से बहने वाली नदियों पर निर्भर हैं। शोध में कहा गया है कि हिमालय और काराकोरम के ग्लेशियरों की हाइड्रोलॉजी एक महत्वपूर्ण विज्ञान है। इस शोध की अगुवाई इंदौर के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के मो. फारूक आजम के द्वारा की गई है। 

नए शोध में इलाके के ग्लेशियरों के चलते बहने वाली नदियों की अब तक की सबसे गहन समीक्षा की गई है। सह-शोधकर्ता कारगेल ने कहा हमारी शोध टीम ने इस विषय को अधिक सटीकता से समझने के लिए लगभग 250 विद्वानों के पेपरों के परिणामों को इकट्ठा किया। इनमें जलवायु के तापमान का बढ़ना, वर्षा में परिवर्तन, ग्लेशियरों का सिकुड़ना और नदी प्रवाह के बीच संबंधों के बारे में आम सहमति शामिल है।

1 अरब से अधिक लोग हिमालय और काराकोरम पहाड़ों में पिघलने वाले ग्लेशियरों से अपनी पानी की जरुरत को पूरा करते हैं। इसलिए जब इस पूरी सदी में ग्लेशियर का अधिकांश भाग पिघल जाएगा और धीरे-धीरे पानी की आपूर्ति बंद हो जाएगी तो इससे बहुत बड़ी आबादी प्रभावित होगी।

आजम ने कहा इलाके के आधार पर हर साल पानी की आपूर्ति पर अलग-अलग तरह का प्रभाव पड़ता है। ग्लेशियरों से पिघला हुआ पानी और ग्लेशियरों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव इसी कारण सिंधु बेसिन में महत्वपूर्ण हैं। गंगा और ब्रह्मपुत्र घाटियों में मानसूनी बारिश का अधिक वर्चस्व है, इसलिए वास्तव में जलवायु परिवर्तन की बड़ी कहानी यह है कि यह मानसून को कैसे प्रभावित करती है।

हिमालय और काराकोरम पर्वतीय ग्लेशियर वाले इलाकों की वार्षिक जल आपूर्ति इनसे जुडी हुई है। विशेष रूप से बहुत अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ी घाटियों और ग्लेशियरों के पास बसे गांवों में। अधिक दूरी पर जहां ऊंचाई कम होती है और ग्लेशियरों का वार्षिक जल आपूर्ति के स्रोत के रूप में वर्षा और पिघलने वाली बर्फ की तुलना में कम महत्व होता है। हालांकि, कुछ निचली घाटियों के सूखे भागों में सबसे शुष्क मौसम के दौरान इस क्षेत्र में, ग्लेशियर से पानी का बहना अभी भी प्रमुख है और लोगों की आजीविका और वहां रहने की क्षमता ग्लेशियरों पर निर्भर करती है। इससे लाखों लोग प्रभावित होते हैं।

टीम का काम क्षेत्र में नदी के प्रवाह को नियमित करने में ग्लेशियरों की महत्वपूर्ण भूमिकाओं के बारे में और कैसे बदलती जलवायु उन प्रवाहों को प्रभावित कर रही है इस बारे में एक मजबूत आम सहमति बनाना है। कारगेल कुछ प्रश्नों पर प्रकाश डालते हैं कि नदी घाटियों के बीच हिमपात और ग्लेशियर का स्वास्थ्य कैसे भिन्न होता है? ग्लेशियर कितने मोटे होते हैं और तेजी से पिघलने के युग में वे कितने समय तक बने रहेंगे? कुछ ग्लेशियर आगे क्यों बढ़ रहे हैं, जबकि उनमें से अधिकांश सिकुड़ रहे हैं? ग्लेशियर के स्वास्थ्य में भौगोलिक भिन्नताएं पर्याप्त हैं और इसका मतलब है कि भविष्य में होने वाले परिवर्तन एक जैसे नहीं होंगे।

हालांकि, जलवायु परिवर्तन न केवल ग्लेशियरों को पिघला रहा है, बल्कि पहाड़ों से लेकर नदी के डेल्टा तक के पूरे जल विज्ञान पर गहरा प्रभाव डाल रहा है। सह शोधकर्ता और डेटन विश्वविद्यालय के उमेश हरिताश्या और कारगेल के साथ नासा द्वारा समर्थित परियोजना के सह-शोधकर्ता ने कहा, कि जलवायु परिवर्तन वर्षा की मात्रा और वितरण को बदल रहा है। बारिश के पैटर्न में बदलाव हो रहा है। ग्लेशियर के पिघलने से अत्यधिक तेजी से बहते पानी की वजह से आकस्मिक बाढ़, भूस्खलन और मलबे के प्रवाह की घटनाओं में वृद्धि होने की आशंका है।

कारगेल ने कहा ग्लोबल वार्मिंग के कुछ पहलू जैसे बर्फ, ग्लेशियर और पानी की आपूर्ति पर प्रभाव क्षेत्र के लोगों और और उनकी अगुवाई करने वाले नेताओं के हाथों में है। एशिया अब दुनिया के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर हावी है। इसके अलावा, धुंध और कालिख हिमालय के ग्लेशियरों को तेजी से पिघलाने के जिम्मेवार हैं। यह लगभग ग्रीनहाउस गैस से होने वाली ग्लोबल वार्मिंग के रूप में महत्वपूर्ण है। यदि क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाएं वायु प्रदूषण को नियंत्रित कर सकती हैं, तो यह ग्लेशियरों के सिकुड़ने की समस्या के उस हिस्से को नियंत्रण में ला सकती है।  

Subscribe to our daily hindi newsletter