मनरेगा जरूरी या मजबूरी -6: बढ़ानी होगी रोजगार की गारंटी

मनरेगा जैसे रोजगार गारंटी कार्यक्रम ना केवल लोगों के घर में कुछ पैसा लाएगा और बाजार में भी डिमांड पैदा करेगा

On: Wednesday 08 July 2020
 
फोटो: माधव शर्मा

2005 में शुरू हुई महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना एक बार फिर चर्चा में है। लगभग हर राज्य में मनरेगा के प्रति ग्रामीणों के साथ-साथ सरकारों का रूझान बढ़ा है। लेकिन क्या यह साबित करता है कि मनरेगा ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है या अभी इसमें काफी खामियां हैं। डाउन टू अर्थ ने इसकी व्यापक पड़ताल की है, जिसे एक सीरीज के तौर पर प्रकाशित किया जा रहा है। पहली कड़ी में आपने पढ़ा, 85 फीसदी बढ़ गई काम की मांग । दूसरी कड़ी में आपने पढ़ा, योजना में विसंगतियां भी कम नहीं । तीसरी कड़ी में आपने पढ़ा, - 100 दिन के रोजगार का सच । चौथी कड़ी में आपने पढ़ा, 250 करोड़ मानव दिवस रोजगार हो रहा है पैदा, जबकि अगली कड़ी में आपने पढ़ा, 3.50 लाख करोड़ रुपए की आवश्यकता पड़ेगी । अब पढ़ें, शंकर सिंह और निखिल डे का लेख-

 

लॉकडाउन और कोरोनावायरस के व्यापक असर के बाद भारत के श्रमिक वर्ग का जो थोड़ा बहुत स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता थी, वह भी खत्म हो गई है। श्रमिक वर्ग बुरी तरह प्रभावित हुआ है। करोड़ों की संख्या में अपने घरों से दूर काम करने वाले मजदूरों ने अनुभव किया कि उनके प्रवासी होने के नाते, ना उनके काम की कोई गारंटी है, ना रहने की, ना खाने की और न आवास की। इसीलिए तीन हफ्ते के पहले वाले लॉकडाउन की घोषणा को सुनते ही, बहुत बड़ी संख्या में श्रमिक और उनके परिवार अपने रोजगार वाली जगह से पैदल ही वापस अपने गांव चले गए। 

सवाल अब उठता है कि ये सब लोग, अपना घर और गुजारा कैसे चलाएंगे? जिन्होंने रोजगार की तलाश में गांव और घर छोड़ा था, उन्हें अब उसी गांव में इस बेरोजगारी के दौर में क्या रोजगार मिलेगा?हकीकत में आज ग्रामीण भारत में कोई रोजगार मिलने की सम्भावना है, तो वह मनरेगा के तहत ही है। इस कानूनी हक को वर्तमान प्रधानमंत्री सहित, कई बड़े अर्थशास्त्रियों ने एक विफलता का प्रतीक करार दिया था, लेकिन आज मनरेगा एक जीवन रेखा बन गया है।

आज सब मानते है कि मनरेगा लोगों की जरुरत है। कोरोना महामारी ने मनरेगा की अहमियत को पुनः समझाया है। मनरेगा रोजी-रोटी का विकल्प और ग्रामीण क्षेत्रों में जीवनदाता बन गया है l बड़ी संख्या में लोग मनरेगा में जा रहे हैं। शहरों में मजदूरों को समझ में आ गया कि रोज-रोज खाने के पैकेट का इंतजार करना और उसके भरोसे रहना ज्यादा लंबा नहीं चल सकता। इसी के चलते सारी तकलीफों को झेलते हुए जिस मनरेगा को दूर से देखते थे, अब उस काम को करने के लिए वे खुद जाने लगे हैं।

मनरेगा में इस वर्ष 40,000 करोड़ रुपए अतिरिक्त आने से, यह कार्यक्रम कुछ रफ्तार से चलने लगा है। मनरेगा ने एक उम्मीद जगाई है। घरों में चूल्हे जलने लगे हैं। भूख का डर कम हुआ है। मनरेगा ठीक से चलेगा तो कोई भूखा नहीं मरेगा। लेकिन, इस बार 100 दिन प्रति परिवार के हक को बढ़ाना पड़ेगाl

आज मनरेगा दोहरा काम कर रहा है। मनरेगा केवल रोजगार नहीं है। मनरेगा ने अपने-अपने गांवों में विकास की कुछ धाराओं को खोज निकाला है। जगह-जगह पानी रुकेगा। हैंडपंप और कुएं रिचार्ज होंगे। नाली, तालाब बनने से खेती में जान आएगी। लोगों ने भी अपनी दिशा बदली है। जिसका खेती की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं था, अब पूरा ध्यान अपने खेतों की सार-संभाल में जाने लगा है।

आज तो मनरेगा विकास का रास्ता तय करेगा। जलवायु में सुधार होगा। मनरेगा को ठीक से चलने के लिए, सबसे पहले अपनी मूल हकों को ठीक से स्थापित करना पड़ेगा। यह हक इन तीन नारों के रूप में रचे गए हैं, और वे सबको बखूबी समझ में आते हैं- 
- हर हाथ को काम मिले

- काम का पूरा दाम मिले

- और समय पर भुगतान मिले 

मनरेगा एक मात्र ऐसा कानून है, जो सरकार द्वारा बनाए हुए बजट की सीमाओं को अपने आप पार कर सकता है। फिर भी, सरकार को पैसे उपलब्ध करने ही पड़ेंगे। भारत सरकार और प्रधानमंत्री ने कोरोना महामारी के दौरान कई बार गरीब लोगों और श्रमिकों को सहायता देने का आश्वासन दिया। दो बार “पैकेज” की घोषणा हुई। एक बार पौने दो लाख करोड़, और एक बार 20 लाख करोड़ की घोषणा की गई, जिसमें कहा गया कि देश के लोगों को तकलीफ नहीं उठानी पड़ेगीl यह भी कहा गया कि मजदूरों का विशेष ध्यान रखा जाएगा। भारत को ‘आत्मनिर्भरता’ के आधार पर ताकतवर बनाया जाएगाl

लेकिन देश में चारों तरफ देखें तो मनरेगा एकमात्र कार्यक्रम है, जिसमें लोगों को कुछ राहत मिलती हुई दिख रही है। जो 40 हजार करोड़ दिए गए वो जल्द ही खत्म होंगे। यह विश्लेषण किया गया है कि एक लाख करोड़ की आवश्यकता सामान्य वर्ष में ही है। मनरेगा के 2019-20 के बजट में 40,000 करोड़ जोड़ने के बाद एक लाख करोड़ की राशि बनती है।

कई राज्यों में लाखों की संख्या में मजदूर, प्रवासी मजदूर एवं स्थानीय लोग, रोजगार पाने के लिए नरेगा कार्यस्थलों पे जा रहे हैं। आज कार्यक्रम में फिलहाल पैसा होने की वजह से सारे रोजगार सृजित करने के रिकॉर्ड तोड़े जा रहे हैं। पिछले सालों में राजस्थान में अधिकतम 32 लाख मजदूरों की संख्या रही हैl यह अब बढ़कर 52 लाख तक पहुंच गई है l उत्तर प्रदेश में भी 50 लाख से ज्यादा मजदूर मनरेगा के तहत रोजगार मांग रहे हैं।

पूरे भारत में भी इसी प्रकार मजदूरों की संख्या 3.19 करोड़ से संख्या बढ़कर 4.89 करोड़ पहुंच चुकी है l यदि मनरेगा को ज्यादा से ज्यादा लोगों के लिए एक सहारा और आधार बनाना है, तो कम से कम पांच चीजों का ध्यान रखना पड़ेगा।

पहला : इस साल रोजगार गारंटी में मजदूरों के दिन बढ़ाने पड़ेंगक। वैसे रोजगार गारंटी में प्रावधान है कि आपदा पड़ने पर 50 दिन प्रति परिवार का रोजगार बढाया जा सकता है। इस साल यह हक 200 दिन कर देना चाहिए, और हर व्यक्ति को यह अधिकार मिलना चाहिए। 

दूसरा: मनरेगा कानून की मूल भावना और नारा को केन्द्रित करते हुए लागू करना पड़ेगा – “हर हाथ को काम मिले, काम का पूरा दाम मिले, समय पर भुगतान मिले l”

तीसरा: मनरेगा में पूरी पारदर्शिता हो और लोगों की भागीदारी से कार्य योजना बने, कार्य के क्रियान्वयन में ग्रामीण नागरिकों की हिस्सेदारी हो और निगरानी और अंकेक्षण में भी जन भागीदारी सुनिश्चित करें l

चौथा: जो काम हो, वह लोग ही मिलकर चयन करें। स्पष्ट है कि जो रोजगार गारंटी में सामूहिक हित के काम सबसे प्रमुख है। लेकिन, कुछ राज्यों में सामूहिक / सरकारी जमीन है और कई राज्यों में इतनी सामूहिक या पड़त भूमि नहीं है। जहां सामूहिक काम के लिए जमीन की कमी है, तो दिन बढ़ाने के साथ-साथ, सामूहिक हित के सेवाओं की तरफ भी रोजगार गारंटी के काम को मोड़ना पड़ेगा। उत्पादन और सामूहिक हित को बढाने के लिए, जल, जंगल , जमीन और खेती-किसानी कर तरफ ध्यान देना, पर्यावरण की रक्षा करना और मानव संसाधनों को सृजित करने के काम के बारे में भी सोचा जा सकता है।

पांचवा: चाहे मनरेगा के कार्यों के माध्यम से मूलभूत ढांचा मजबूत करना हो, या सेवाएं उपलब्ध कराना हो या उत्पादन का काम हो, हर काम को गांधीजी के ताबीज की तर्ज पर सबसे पहले और सबसे ज्यादा फायदा उस गरीब और हाशिये पर खड़े इंसान को मिले l

आखिर में हमें समझना पड़ेगा कि सुचारू रूप से चल रहा मनरेगा स्थानीय बाजारों को भी जान देगा l यदि उपरोक्त नियमों और सिद्धांतों को रोजगार गारंटी के नींव में डालें तो रोजगार गारंटी कार्यक्रम ना केवल लोगों के घर में कुछ पैसा लाएगा और बाजार में भी डिमांड जगाएगा। वह सरकार और स्थानीय निकायों को इस आपदा का सामना करने में और सक्षम बनाएगा। मनरेगा को सरकार ताकत देगी तो मनरेगा भी सरकार को करोना का सामना करने में ताकत देगा।

(लेखक द्वय शंकर सिंह और निखिल डे मजदूर किसान शक्ति संगठन के संस्थापक सदस्य हैं )

जल्द पढ़ेंगे, कुछ और कॉलम...

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