आपकी याददाश्त को कमजोर कर रहा है वायु प्रदूषण: शोध

यह सच है कि जैसे-जैसे आयु बढ़ती है, हमारी याददाश्त भी कमजोर होती जाती है। पर अब बढ़ते वायु प्रदूषण के चलते हमारी याददाश्त, आयु से पहले ही कमजोर होती जा रही है

By Lalit Maurya

On: Thursday 17 October 2019
 
Photo: Vikas Choudhary

विश्व स्वस्थ्य संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की 91 फीसदी आबादी उन स्थानों पर रहती है जहां हवा की गुणवत्ता मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इसका सीधा मतलब हुआ कि आज दुनिया के अधिकतर लोग वायु प्रदूषण कि जद में है । जिससे उनको नित नयी और कोई न कोई बीमारियां घेरे रहती हैं। आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में हर वर्ष वायु प्रदूषण 70 लाख लोगों की जान ले लेता है, जबकि स्ट्रोक से होने वाली 24 फीसदी और हृदय रोग से होने वाली 25 फीसद मौतों की वजह वायु प्रदूषण ही है। पर यदि बात स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों की करें तो दुनिया की केवल 9 फीसदी आबादी ही इसके खतरे से बाहर है । स्ट्रोक, दमा, ह्रदय रोग, आंख, कैंसर और ऐसी अनगिनत बीमारियों से ग्रस्त हैं, पर हाल ही में वार्विक विश्वविद्यालय द्वारा किये गए नए शोध से पता चला है कि वायु में मौजूद नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और पीएम10 का बढ़ता स्तर हमारी याददाश्त को नुक्सान पहुंचा रहा है । इंग्लैंड के लोगों पर किये इस शोध में यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है ।जैसे-जैसे हमारी आयु बढ़ती है, हमारी याददाश्त भी कमजोर होती जाती है । शोधकर्ताओं का अनुमान है कि इंग्लैंड के सबसे स्वच्छ और सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की यादाश्त का अंतर आयु के 10 वर्षों के बढ़ने जितना है।  

इंग्लैंड भर में 34,000 लोगों पर किये गए इस अध्ययन में प्रदूषित और गैर प्रदूषित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के बीच स्मृति की गुणवत्ता में महत्वपूर्ण अंतर पाया गया। इस अध्ययन में शामिल सभी लोगों को शब्द-याद करने की परीक्षा में 10 शब्द याद करने के लिए दिए गए । इस विश्लेषण के लिए याददाश्त पर प्रभाव डालने वाले अन्य घटकों जैसे कि लोगों की उम्र, स्वास्थ्य, शिक्षा का स्तर, जातीयता, परिवार और रोजगार की स्थिति आदि का भी ध्यान रखा गया । साथ ही शोधकर्ताओं ने इंग्लैंड के प्रत्येक जिले की वायु गुणवत्ता सम्बन्धी जानकारी एकत्र की, जिसमें नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर (पीएम10) दोनों शामिल थे । पीएम10 का तात्पर्य उन प्रदूषकों से है, जिनका व्यास 10 माइक्रोमीटर या उससे छोटा होता है । यह दोनों ही प्रदूषक कार और अन्य वाहनों, बिजली संयंत्रों और उद्योगों में जीवाश्म ईंधन को जलाने से उत्सर्जित होते हैं । यह अध्ययन जर्नल इकोलॉजिकल इकोनॉमिक्स में प्रकाशित होगा। वारविक विश्वविद्यालय के एंड्रयू ओसवाल्ड ने बताया कि “वायु प्रदूषण, याददाश्त को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है, जो कि चिंता का विषय है । हमने जब प्रदूषित क्षेत्र में रहने वाली 50 वर्ष की शख्स को एक वाक्य याद करने के लिए कहा, तो उसकी याददाश्त गैर प्रदूषित क्षेत्र में रहने वाली 60 वर्ष की शख्स जितनी पायी गयी।”

यह अध्ययन साफ तौर पर इस ओर इशारा है कि वायु प्रदूषण हमारे दिमाग और याददाश्त पर असर डाल रहा है । जो कि बच्चों और बुजुर्गों के मानसिक और बौद्धिक विकास पर और बुरा असर डाल सकता है, जो कि चिंताजनक है । यह समस्या भारत के दिल्ली, कोलकाता, मुंबई जैसे शहरों के लिए और गंम्भीर हो जाती है, क्योंकि यहां वायु प्रदूषण का स्तर विश्व स्वस्थ्य संगठन द्वारा तय वायु की गुणवत्ता के मानकों से कई गुना अधिक है । इसलिए यह जरुरी हो जाता है कि वायु प्रदूषण के स्रोतों पर लगाम लगायी जाए । यह सरकार की जिम्मेदारी है की वह प्रदूषण को रोकने के लिए मानक और नियम निर्धारित करे । साथ ही यह हमारी भी जिम्मेदारी है कि जितना हो सके प्रदूषण को रोकने में अपना योगदान दे, क्योंकि यह न केवल सरकार और समाज का दायित्व है, बल्कि हमारे और हमारे परिवार के स्वास्थ्य का भी सवाल है । प्रदूषण का जहर हमें अंदर ही अंदर खोखला करता जा रहा है, जो बाहर से हमें दिखाई भी नहीं देता, और जब तक हमें इसका पता चलता है बहुत देर हो जाती है।

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