औषधीय पौधों के बेतहाशा उपयोग का बुरा असर, कम हुआ सांस्कृतिक महत्व और उपलब्धता

कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद से औषधीय जड़ी-बूटियों और पौधों का उपयोग काफी बढ़ गया है

By Dayanidhi

On: Monday 18 September 2023
 
फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, ललिताम्बा

औषधीय पौधों और जड़ी-बूटियों का उपयोग दुनिया भर में हजारों वर्षों से किया जा रहा है और वर्तमान समय में उनका उपयोग काफी हद तक बढ़ गया है।

इसके बावजूद इस बारे में बहुत कम जानकारी है कि औषधीय पौधों का व्यवसायिक तौर पर बेहताशा उपयोग उनके संरक्षण को कैसे प्रभावित कर सकता है, जिससे उनके अस्तित्व को लेकर चिंता बढ़ गई है। बहुप्रतीक्षित पौधों से मुनाफाखोरी उन पारंपरिक समुदायों को कैसे प्रभावित करती है जो उन पर निर्भर हैं।

औषधीय पौधों का प्रयोग कौन कर रहा है?

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया की 70 से 90 फीसदी आबादी वर्तमान में स्वास्थ्य देखभाल के प्राथमिक साधन के रूप में पारंपरिक समग्र चिकित्सा पर निर्भर है, लेकिन ये लोग कौन हैं और समग्र चिकित्सा क्या है तथा इसका उपयोग कौन करता है?

समग्र चिकित्सा में हर्बल या पौधे से संबंधित चिकित्सा, योग और एक्यूपंक्चर से लेकर स्वदेशी चिकित्सा पद्धतियों तक सब कुछ शामिल है। ये प्रथाएं अक्सर उन देशों की संस्कृति में एक बड़ी भूमिका निभाती हैं जहां उनकी उत्पत्ति हुई, जैसे कि चीन और भारत में।

अध्ययनकर्ता तथा स्पैनिश औषधीय पौधों के लिए होने वाले खतरे की जांच करने वाले डॉ. मैनुअल पार्डो डी सैंटायना बताते हैं कि, औषधीय पौधों का उपयोग भोजन या वार्षिक उत्सवों की तरह सांस्कृतिक पहचान के पहलुओं से जुड़ा हुआ है। लोग खुद को इससे जोड़ते हैं स्थानीय रीति-रिवाज और समय के साथ उन्हें छोड़ना नहीं चाहते। यह शोध पीपल एंड नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुआ है

पारंपरिक चिकित्सा पर भरोसा करने वाले समुदायों के लोग पौधों के उपयोग के माध्यम से पाचन समस्याओं या लगातार खांसी जैसी कई सामान्य बीमारियों को दूर करने में सक्षम हैं। औषधीय पौधों ने आधुनिक फार्मास्युटिकल चिकित्सा को भी प्रभावित किया है, 40 फीसदी से अधिक फॉर्मूलेशन प्राकृतिक उत्पादों पर आधारित हैं। जिनमें एस्पिरिन भी शामिल है, जिसका मुख्य घटक विलो और चिनार के पेड़ों में पाए जाने वाले सैलिसिलिक एसिड का एक बदलाव हुआ संस्करण है।

औषधीय पौधों का उपयोग क्यों बढ़ रहा है और यह हमारे लिए क्यों मायने रखता है?

कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद से औषधीय जड़ी-बूटियों और पौधों का उपयोग काफी बढ़ गया है। ऐसे कई कारण हैं जो इस वृद्धि को प्रभावित कर सकते हैं,  जिनमें टीके के निर्माण से पहले लक्षणों को प्रबंधित करने का प्रयास, टीकाकरण कार्यक्रमों पर अविश्वास या कुछ आबादी के पास टीके तक कम पहुंच होना शामिल है।

हालांकि, औषधीय पौधों की बढ़ती मांग के कारण पौधों की अनियंत्रित व्यावसायिक खेती हो रही है, जिसे उनकी स्थिरता के लिए खतरा माना जाता है। बेहद ढीले अर्थ में, टिकाऊ खेती से तात्पर्य इस तरह से खेती से है जिससे इनकी संख्या में गिरावट न हो।

स्वदेशी समूहों सहित पारंपरिक दवाओं के लंबे समय तक उपयोगकर्ता हमेशा हमारी धरती के संसाधनों का टिकाऊ तरीके से उपयोग करने के समर्थक रहे हैं। शोध से पता चलता है कि कई पारंपरिक समाज रणनीतियों को अपनाने के साथ टिकाऊ खेती को बढ़ावा देते हैं जैसे कि प्रजनन की अनुमति देने के लिए एकत्र किए गए पौधों की मात्रा को सीमित करना, नुकसान को कम करने के लिए पौधे से केवल सक्रिय घटक  का उपयोग करना, और हर बगीचे में बीज दोबारा लगाना।

हालांकि, व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए औषधीय पौधों की खेती करने वाले अक्सर फयदा बढ़ाने के लिए पारंपरिक समुदायों द्वारा निर्धारित प्रथाओं की उपेक्षा करते हैं।

टिकाऊ खेती न होने से पारंपरिक समाज किस तरह प्रभावित हो सकते हैं?

व्यावसायिक उत्पादकों द्वारा कुछ पौधों की प्रजातियों के अत्यधिक उपयोग ने संरक्षण कानूनों को प्रेरित किया है जो सभी के लिए उनके उपयोग को सीमित करते हैं। यहां तक कि पूरी तरह से टिकाऊ तरीके से पौधों को इकट्ठा करने वालों को भी स्वतंत्र रूप से खेती करने से प्रतिबंधित कर दिया गया है।

डॉ. पार्डो डी संतायना बताते हैं, इन कानूनी सुरक्षाओं के परिणाम ने समुदायों के भीतर बड़े पैमाने पर संघर्ष पैदा कर दिया है। कुछ लोगों को लगता है कि कुछ व्यावसायिक खेती करने वालों के कार्यों के परिणामस्वरूप औषधीय पौधों की खेती का उनके अधिकार गलत तरीके से सीमित किए जा रहे हैं।

डॉ. डी संतायना ने सुझाव देते हुए कहा कि, सबसे पहले, हमें यह जानना चाहिए कि स्थानीय और स्वदेशी लोग औषधीय पौधों के खतरे के मुद्दे से कैसे निपटते हैं।

पारंपरिक संरक्षण विधियों का उपयोग करने वाले स्वदेशी या स्थानीय समुदायों के कारण दुनिया की कई प्रजातियां और क्षेत्र बरकरार हैं। कुछ लोग पर्यावरणीय मामलों के लिए अपनी जान भी जोखिम में डाल देते हैं, ग्लोबल विटनेस के अनुसार जंगलों, नदियों और अन्य पारिस्थितिक तंत्रों की रक्षा करते हुए 2020 में लगभग 227 लोग मर गए।

डॉ. डी संतायना ने शोध के निष्कर्ष में कहा कि,  इन समूहों को पौधों के जीवन चक्र और टिकाऊ भूमि प्रबंधन का अच्छा ज्ञान है। उन्हें औषधीय पौधों की देखभाल जारी रखने और जिम्मेदारी से उनकी खेती करने के लिए कानूनी अनुमति देना बढ़ती मांग और उनके अस्तित्व को निरंतर संतुलित करने के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है।

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