लुधियाना गैस कांड: कैसे फैली जहरीली गैस हाइड्रोजन सल्फाइड, जिसने देखते ही देखते ले ली 11 जानें

जानकारों के मुताबिक लुधियाना में बड़ी संख्या में गारमेंट उद्योग हैं। ऐसे में यह देखना होगा कि क्या कोई केमिकल मैनहोल में डाला गया था

By Rohini K Murthy, Lalit Maurya

On: Tuesday 02 May 2023
 
30 अप्रैल 2023 को लुधियाना के ग्यासपुरा में हुए गैस रिसाव के बाद पहरा देती पुलिस; फोटो: पंजाब सरकार/ ट्विटर

30 अप्रैल, 2023 को तड़के लुधियाना में हुए गैस रिसाव ने देखते ही देखते 11 लोगों की जान ले ली, जबकि चार अन्य को अस्पताल में भर्ती कराया गया है। हालांकि घटना के सटीक कारणों की अभी भी जांच जारी है, लेकिन इसके दो पहलू सामने आए हैं।

अधिकारियों को लुधियाना के ग्यासपुरा इलाके में एक अत्यधिक जहरीली गैस हाइड्रोजन सल्फाइड के उच्च स्तर का पता चला है। इस बारे में दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) में औद्योगिक प्रदूषण यूनिट के कार्यक्रम निदेशक निवित यादव ने डाउन टू अर्थ को बताया कि, "घटना को 24 घंटे बीत चुके हैं और जांच अभी भी जारी है।"

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हाइड्रोजन सल्फाइड इंसानों के लिए हानिकारक है। जो कम स्तर पर आंख, नाक और गले में जलन पैदा कर सकती है। वहीं मध्यम स्तर से सिरदर्द, चक्कर आना, मतली, उल्टी, खांसी और सांस लेने में कठिनाई जैसी दिक्कतें होती है। यदि 2014 में प्रकाशित एक रिसर्च पर गौर करें तो उसके अनुसार इस गैस की 0.5 भाग प्रति मिलियन (पीपीएम) से अधिक मात्रा हानिकारक हो सकती है।

वहीं सेंटर फॉर डिजीज कण्ट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार इसकी उच्च मात्रा सदमा, कोमा, बेहोशी और मांसपेशियों में ऐंठन के साथ मृत्यु का कारण भी बन सकती है। पता चला है कि 50 पीपीएम से ऊपर हाइड्रोजन सल्फाइड की मात्रा जानलेवा हो सकती है, वहीं 700 पीपीएम से ऊपर घातक हो सकती है।

गौरतलब है कि हाइड्रोजन सल्फाइड प्राकृतिक रूप से सीवरों में पाई जाती है। इस बारे में निवित यादव को सूत्रों से पता चला है कि पिछले दिनों ग्यासपुरा में मैनहोल की सफाई कराई गई थी। "लेकिन हम निश्चित तौर पर नहीं कह सकते कि सफाई कितनी प्रभावी थी।" उनके अनुसार यदि सफाई ठीक से नहीं हुई तो लीकेज हो सकती है।

वहीं यदि कुछ केमिकल्स का निपटान सीवर में किया गया हो तो यह बदले में अधिक हाइड्रोजन सल्फाइड पैदा कर सकता है। सूत्रों के मुताबिक इस मोहल्ले में मैनहोल भी टूटा हुआ था। यादव ने कहा, "ज्यादातर पीड़ित इसके आसपास रहने वाले दो परिवारों के थे।"

जानकारों के मुताबिक लुधियाना में बड़ी संख्या में गारमेंट उद्योग हैं। "ऐसे में यह देखना होगा कि क्या कोई केमिकल मैनहोल में डाला गया था। इस बारे में उनके अनुसार हम अगले एक-दो दिनों में और ज्यादा जान पाएंगे।” उनका कहना है कि यदि यह एक औद्योगिक दुर्घटना है, तो इसकी उचित जांच की जानी चाहिए।

पहले भी घट चुकी हैं इस तरह की आपदाएं

भारत में औद्योगिक दुर्घटनाओं का अपना एक इतिहास रहा है। 2023 में जर्नल सेफ्टी साइंस में प्रकाशित एक रिसर्च के मुताबिक, 2010 से 2020 के बीच, देश में 560 औद्योगिक दुर्घटनाओं घटी थी, जिनके कारण पर्यावरणीय को भारी क्षति हुई थी। मुख्य रूप से इन दुर्घटनाओं से वायु और जल प्रदूषण की सूचना मिली है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक इन आपदाओं में करीब 2,500 जिंदगियां खो चुकी हैं, जबकि 8,500 लोग घायल हुए हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि दुनिया की सबसे भयानक औद्योगिक दुर्घटनाओं में से भोपाल गैस त्रासदी थी, जो 1984 में भोपाल में स्थित यूनियन कार्बाइड लिमिटेड में हुए गैस रिसाव के कारण घटी थी।

2005 में प्रकाशित एक अध्ययन के हवाले से पता चला है कि कि भोपाल में यूनियन कार्बाइड लिमिटेड नामक कीटनाशक संयंत्र से 40 टन मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ था। इस रिसाव से कम से कम 3,800 लोगों की मौत हो गई और हजारों लोगों आज भी इसके असर से उबर पाए हैं।

इसी तरह अभी हाल ही में, 7 मई 2020 की सुबह एलजी पोलिमर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के विशाखापट्टनम प्लांट से स्टाइरीन गैस का रिसाव हुआ था जिसके चलते 12 लोगों कि दुखद मौत हो गई थी, जबकि इससे हजारों लोग प्रभावित हुए थे। इस बारे में जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में एलजी पॉलिमर इंडिया और उसके प्रमुख कोरियाई उद्योग एलजी केम के अनुभवहीनता को इस दुर्घटना की सबसे बड़ी वजह माना था।

समिति ने जो 155 पेजों की रिपोर्ट एनजीटी को सौंपी थी उसमें हादसे के लिए तकनीकी और सुरक्षा खामियों को कारण बताया था। वहीं उसी साल जून में गुजरात के दहेज (भरूच जिले) में एक कीटनाशक कारखाने में विस्फोट हुआ था। इस त्रासदी में आठ लोगों की दुखद मौत हो गई, जबकि 50 से अधिक श्रमिक घायल हो गए थे।

इसी तरह मई और जुलाई 2020 में, तमिलनाडु के कुड्डालोर में नेवेली लिग्नाइट कॉर्पोरेशन लिमिटेड के थर्मल पावर स्टेशन में बॉयलर फट गए थे। इस दुर्घटना में कम से कम छह लोगों की मौत हो गई और 17 अन्य घायल हो गए थे। इससे पहले मई में एक अन्य बिजली संयंत्र में दो बॉयलरों में हुए विस्फोट से दो श्रमिकों की मौत हो गई थी, जबकि हादसे में आठ श्रमिक घायल हो गए थे।

एक अन्य घटना में आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में 29 जून, 2020 को एक फार्मास्युटिकल कंपनी में हुए गैस रिसाव के बाद दो लोगों की मौत हो गई थी, जबकि चार को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा था। यह घटना परवाड़ा क्षेत्र में साईनार लाइफ साइंसेज प्राइवेट लिमिटेड की विशाखापत्तनम इकाई में हुई थी, जिसमें से बेंज़िमिडाज़ोल गैस का रिसाव हुआ था।

11 जून, 2020 को गुजरात के अंकलेश्वर में गुजरात औद्योगिक विकास निगम (जीआईडीसी) के केमिकल एस्टेट के एक कारखाने में हुए विस्फोट में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी जबकि पांच अन्य घायल हो गए थे। सूत्रों के मुताबिक, यह धमाका हेमनी इंडस्ट्रीज लिमिटेड की यूनिट में हुआ था।

वहीं जर्नल सेफ्टी साइंस में छपे अध्ययन के मुताबिक देश में इन औद्योगिक दुर्घटनााओं के कारण पर्यावरण को जो नुकसान हो रहा है उसका जायजा लेने के लिए  कोई प्रयास नहीं किए जा रहे। ऐसे में शोधकर्ताओं ने चेताया है कि दूषित पानी, मिट्टी, वायु या जैव विविधता को होते नुकसान जैसे औद्योगिक आपदाओं के पर्यावरणीय प्रभाव प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मानव कल्याण को प्रभावित कर सकते हैं।

इस बारे में उस्मानिया और हैदराबाद विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान विभाग के एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर जी श्रीमन्नारायण ने डाउन टू अर्थ को बताया कि रिसाव की स्थिति में समय पर कदम उठाना भी जरूरी है। उनके अनुसार इसके लिए “कंट्रोल रूम में लोगों को अलर्ट करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक सेंसर लगाए जाने चाहिए।" एथिल मर्कैप्टन जैसे योजक, जिसमें तीखी गंध होती है, को गंधहीन, जहरीली गैसों में मिलाया जा सकता है। गौरतलब है कि लोगों को लीक के बारे में चेतावनी देने के लिए एलपीजी में एथिल मर्कैप्टन मिलाया जाता है।” हालांकि उनका कहना है कि ऐसे कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।

इस रिसर्च में शोधकर्ताओं ने नीति निर्माताओं से यह भी सुनिश्चित करने का आग्रह किया है कि उद्योग उचित सुरक्षा उपाय अपनाएं। इस तरह के उद्योंगों को चला रहे लोगों को भी जागरूक होना होगा। साथ ही उन्हें दुर्घटना की स्थिति में इंसानों और पर्यावरण को होने वाली क्षति की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। देखा जाए तो किसी भी दुर्घटना को होने से रोकना और बचाव सबसे अहम है। इसके लिए उद्योगों को मुनाफे से ज्यादा लोगों की जान और पर्यावरण को वरीयता देनी होगी। साथ ही सरकारों को भी ऐसे मामलों को गंभीरता से लेना होगा।

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