पंजाब-हरियाणा के बीच सतलज-यमुना लिंक नहर विवाद में हस्तक्षेप करे केंद्र: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को सतलुज-यमुना लिंक नहर के लिए पंजाब में आवंटित भूमि का सर्वे करने को कहा है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भूमि सुरक्षित है

By Susan Chacko, Lalit Maurya

On: Monday 09 October 2023
 

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को सतलुज-यमुना लिंक नहर के लिए पंजाब में आवंटित भूमि का सर्वे करने को कहा है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भूमि सुरक्षित है। पंजाब सरकार की इससे संबंधित कार्रवाई रोक दी गई है। अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने यह आंकलन करने का भी सुझाव दिया है कि पंजाब में कितना निर्माण कार्य हो चुका है।

मुद्दा पंजाब में सतलुज-यमुना लिंक नहर के निर्माण से जुड़ा है। चूंकि हरियाणा पहले ही अपने हिस्से का निर्माण कर चुका है। पंजाब में भूमि अधिग्रहण के बाद निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया था, हालांकि यह कितना पूरा हुआ है, इसके बारे में अलग-अलग अनुमान हैं।

पंजाब ने किसानों को जमीन वापस देने की कोशिश की, लेकिन अदालत ने इस कार्रवाई को रोक दिया और उसपर एक रिसीवर नियुक्त कर दिया है।

पंजाब ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया कि समय के साथ, पानी की उपलब्धता कम हो गई है। इसका मतलब है कि हरियाणा का हिस्सा कथित तौर पर कम हो गया है और उसे अन्य तरीकों से पूरा किया जा सकता है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि निष्पादन का मामला जल आबंटन से संबंधित नहीं है, क्योंकि इसका समाधान पहले ही हो चुका है।

मथुरा-वृन्दावन में यमुना में छोड़े जा रहे दूषित सीवेज के मामले पर कोर्ट ने मांगी रिपोर्ट

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने इस रिपोर्ट को दाखिल करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया है। रिपोर्ट में मथुरा-वृंदावन में यमुना नदी में छोड़े जा रहे सीवेज की समस्या के समाधान के लिए क्या कदम उठाए गए हैं उसकी जानकारी देनी होगी। इस बारे में कोर्ट ने 11 अप्रैल 2023 को दिशानिर्देश जारी किए थे।

गौरतलब है कि 11 अप्रैल, 2023 को एनजीटी ने मुख्य सचिव से संबंधित राज्य अधिकारियों के साथ मिलकर बहाली के उपाय करने का आदेश दिया थे। साथ ही उन्हें संबंधित पदाधिकारियों की विशेष बैठक भी आयोजित करने का निर्देश दिया गया था।

कोर्ट ने अधिकारियों को यह भी सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि सभी अनुपचारित नालों को दोबारा निर्दिष्ट एसटीपी की ओर मोड़ा जाए। प्रत्येक एसटीपी से निकलने वाले सीवेज का उपयोग निर्दिष्ट क्षेत्रों में सिंचाई या कृषि कार्यों के लिए किया जाए। इतना ही नहीं साफ करने के बाद सीवेज को नदी में तभी छोड़ा जाए जब इसका उपयोग न किया जा रहा हो। ये वे कदम हैं जिनका पालन करने के लिए अदालत ने राज्य को आदेश दिया है।

आवेदक के मुताबिक मथुरा-वृंदावन में 36 नाले हैं जो यमुना में सीवेज छोड़ रहे हैं। यमुना में पानी की गुणवत्ता इतनी खराब हो चुकी है कि वो जीवन को बनाए रखने के लिए उपयुक्त नहीं है। उनका कहना है कि मथुरा-वृंदावन के 36 नालों में से 30 नालों का उपयोग किया गया, जबकि छह काम लायक नहीं रह गए हैं। आवेदक ने आरोप लगाया है कि, "मथुरा-वृंदावन में 70 एमएलडी सीवेज के उपचार का जो दवा अधिकारियों ने किया है वो भ्रामक है।"

10 अगस्त, 2023 की एक रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) ने खुलासा किया है कि मथुरा-वृंदावन के नगर आयुक्त पर 3.25 करोड़ रुपये का पर्यावरणीय मुआवजा लगाया गया था। यह जुर्माना पांच नालों पर 13 माह के लिए पांच लाख रुपये प्रति नाली प्रति माह की दर से लगाया गया था।

इसके अतिरिक्त, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने अपनी रिपोर्ट ने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स (एसटीपी) के आउटलेट पर फीकल कोलीफॉर्म की बहुत अधिक मात्रा होने का संकेत दिया था। प्रदूषण के इस उच्च स्तर को नदी में प्रवाहित करने या किसी अन्य मानव संपर्क में आने की अनुमति नहीं दी जा सकती। अदालत ने कहा है कि क्लोरीनीकरण की प्रक्रिया इस मुद्दे को प्रभावी ढंग से संबोधित नहीं कर रही है।

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